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लाइफस्टाइल डेस्क.एक जमाना था जब प्री-स्कूल नाम की कोई चीज नहीं होती थी। पड़ोसवाली आंटी का स्पेयर कमरा जिसमें कुछ खिलौने और कुछ पोस्टर्स होते थे, वही था प्ले स्कूल समझो। वहीं पड़ोस के बच्चे मिल-जुलकर खेल लेते थे और खेल-खेल में थोड़ा-बहुत सीख जाते थे। खैर, अब प्री या नर्सरी स्कूल चुनने में किन बातों का ध्यान रखा जाए यह जानना जरूरी है। अव्वल तो बच्चे के ढाई साल पूरे होने से तीन-चार महीने पहले से यह प्रक्रिया शुरू कर देना चाहिए। जानिए अन्य बातें जो इस काम में आपकी मदद करेंगी।
1. बच्चे को समझिए
स्कूल के बारे में कुछ भी जानने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि बच्चा फॉर्मल स्कूल के लिए मानसिक तौर पर तैयार है कि नहीं। उसकी क्षमताओं, उसकी ताकतों तथा कमजोरियां व उसके व्यक्तित्व को समझें। जैसे कुछ बच्चे दूसरे बच्चों के साथ मिल-जुलकर खेलने में खुश रहते हैं, वहीं कुछ बच्चे शर्मीले स्वभाव के कारण अकेले रहने में ज्यादा सहज होते हैं।
2. उसकी उम्र देखें
हर बच्चा ढाई या तीन साल की उम्र में स्कूल जाने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होता। इसीलिए ज्यादातर मां-पिता प्ले-स्कूल ही प्रिफर करते हैं, जहां बच्चे खेल-खेल में ही बेसिक चीजें सीख लें। इसके अलावा प्री-स्कूल या नर्सरी बच्चों को जरूरी सामाजिक कौशल भी सिखाते हैं, मसलन निर्देशों का पालन करना, दूसरे बच्चों से मेलजोल करना।
3. एक्टिविटी को जानें
प्ले स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के लिए पढ़ाई से ज्यादा अन्य गतिविधियां मायने रखती हैं। इतने छोटे बच्चे पढ़ाई से जल्दी बोर हो जाते हैं। ऐसे में ये देखना जरूरी है कि जिस स्कूल को आप अपने बच्चे के लिए चुन रही हैं, वहां अन्य एक्टिविटीज कितनी होती हैं या दिन का कितना समय खेल-कूद के लिए दिया जाता है। बच्चे के सही विकास के लिए यह जानना जरूरी है।
4. जरूरी लिस्ट बनाएं
बच्चे की नर्सरी या प्री-स्कूल चुनने में आप किन बातों को प्राथमिकता देंगे? आपके घर से दूरी, स्कूल की शैक्षिक प्रतिष्ठा, मैथेडोलॉजी क्या है, अनुशासन कैसे बनाए रखते हैं आदि। बच्चों के अनुपात में कितने टीचर्स हैं, फीस क्या है, साफ-सफाई का रखरखाव, सुरक्षा के उपायों की स्थिति वगैरह की एक लिस्ट बनाएं। उसके बाद अपनी प्राथमिकताएं तय कर लें।
5. स्कूलों के बारे में जानें
जिन स्कूलों को आपने शॉर्टलिस्ट किया है अब उनके बारे में गहराई से जानें। उनकी वेबसाइट विजिट करें। उन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता से चर्चा करें और फिर स्कूलों में जाकर वस्तु-स्थिति देखकर फैसला लें। स्टाफ के बारे में जानने योग्य कई बातें होती हैं कि क्या वे बच्चों से प्यार से बात करते हैं, उनके साथ सम्मान और धैर्य से पेश आते हैं।
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